सूरजपुर: छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले की घुमावदार पहाड़ियों के बीच बसा कुदरगढ़ न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आस्था, रहस्य और इतिहास का संगम भी है। यहाँ हर शिखर, हर पत्थर और हवा के हर झोके में देवी शक्ति की उपस्थिति का एहसास होता है। यही वह स्थान है जहाँ देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और तब से यह पर्वतीय क्षेत्र देवी आराधना का एक पवित्र केंद्र बन गया है।
कुदरगढ़ नाम एक प्राचीन कथा से जुड़ा है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, "कुदुर" नामक एक राक्षस ने इस क्षेत्र को आतंकित किया था। देवी दुर्गा ने यहीं उसका वध किया था, और इस स्थान को "कुदरगढ़" के नाम से जाना जाने लगा - वह किला जहाँ कुदुर का अंत हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि राक्षस का वध करने के बाद, देवी यहाँ निवास करने लगीं और तब से यह क्षेत्र माँ कुदरगढ़ के नाम से जाना जाने लगा।
समुद्र तल से लगभग 800 मीटर ऊपर स्थित कुदरगढ़ माता मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्तों को लगभग 1,000 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग पूरी आस्था और भक्ति के साथ इन सीढ़ियों पर चढ़ते हैं, उनकी हर मनोकामना देवी पूरी करती हैं। नवरात्रि के दौरान यहाँ एक मेला लगता है, जिसमें न केवल सूरजपुर, बलरामपुर और अंबिकापुर से, बल्कि झारखंड और उत्तर प्रदेश से भी हज़ारों श्रद्धालु आते हैं।
कुदरगढ़, सूरजपुर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर और अंबिकापुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर स्थित है। अंबिकापुर से सूरजपुर तक पक्की सड़क है, और वहाँ से स्थानीय टैक्सी या निजी वाहन द्वारा कुदरगढ़ आसानी से पहुँचा जा सकता है। हरी-भरी पहाड़ियाँ और घने साल के जंगल मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करते हैं।
कुदरगढ़ की पहाड़ियाँ प्रकृति का स्वर्ग हैं। यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य मनमोहक होता है। आस-पास के झरनों की कलकल ध्वनि और मंदिर परिसर की घंटियों की गूंज मिलकर एक दिव्य वातावरण का निर्माण करती है। शांति और भक्ति का यह अनुभव हर आगंतुक को एक गहन ऊर्जा से भर देता है।
सूरजपुर के एक वरिष्ठ नागरिक गोविंद प्रसाद गुप्ता बताते हैं, "कुदरगढ़ माँ हमारी कुलदेवी हैं। यहाँ पहली बार आने वाले हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है। पिछले कुछ वर्षों में सड़कें और सीढ़ियाँ तो बनी ही हैं, लेकिन अगर पर्यटन सुविधाओं को और बढ़ाया जाए, तो यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा धार्मिक पर्यटन स्थल बन सकता है।"
कुदरगढ़ केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक पवित्र भूमि है जहाँ आस्था और इतिहास का मिलन होता है। यह स्थान आस्था, भक्ति और प्रकृति के संगम को दर्शाता है। कुदरगढ़ आने वाला हर व्यक्ति न केवल देवी माँ के दर्शन करता है, बल्कि अपने भीतर की ऊर्जा और शांति को भी पुनः अनुभव करता है। कुदरगढ़ का हर कदम, हर हवा, हर चट्टान आज भी यही कहती है: "जहाँ माँ विराजती हैं, वहाँ कोई भय नहीं, केवल आस्था है।"
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