लखनऊः हिंदू धर्म और पौराणिक कथाओं में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता कहा जाता है। हर माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायकी या विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा-अराधना करने के साथ व्रत रखना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इस बार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी 28 जून यानी शनिवार को है। इसलिए हम आपको बताएंगे कि विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को किस तरह से प्रसन्न किया जा सकता है।
पुराणों में चतुर्थी की विस्तृत व्याख्या की गई है। यहां भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करने के साथ ही यह भी लिखा हुआ है कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। विनायकी व्रत की शुरुआत करने के लिए जातक को पूरे विधि-विधान का पालन करते हुए पूजा-अर्चना करनी होती है। इसके लिए साधक को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद पीले वस्त्र पहनकर, पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करना चाहिए। इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष दूर्वा, सिंदूर और लाल फूल अर्पित करना होता है। भगवान गणेश को लड्डू अतिप्रिय है। इसलिए उनको बूंदी के लड्डू और मोदक का भोग लगाना चाहिए। इनमें से पांच लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को अवश्य करें और पांच लड्डू भगवान के चरणों में रखकर शेष लड्डू को प्रसाद में वितरित कर देना चाहिए। गणेश जी की पूजा करते समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए। इसके बाद चतुर्थी के दिन शाम के समय गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। उनकी पूजा करने से साधक को हर प्रकार के संकटों और कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसलिए संकटों से मुक्ति के लिए विनायक चतुर्थी की रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देना अत्यंत फलकारी माना जाता है। अर्घ्य देते समय ‘सिंहिका गर्भसंभूते चन्द्रमांडल सम्भवे। अर्घ्यं गृहाण शंखेन मम दोषं विनाशय’॥ मंत्र बोलकर जल अर्पित करना चाहिए। यदि संभव हो तो चतुर्थी का व्रत अवश्य रखें। इस दिन भगवान गणपति जी की पूजा करने से ग्रहबाधा और ऋण जैसे दोष शांत होते हैं।
भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देव के रूप में जाना जाता है। पुराणों में भी उनकी महिमा का वर्णन मिलता है। पंचाग के अनुसार, विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान से अपनी किसी भी मनोकामना की पूर्ति के आशीर्वाद को ‘वरद’ भी कहा जाता है। आप इस दिन ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद लेने के लिए उपवास कर सकते हैं। किसी भी मनुष्य के जीवन में ज्ञान और धैर्य दो ऐसे नैतिक गुण हैं, जिसका महत्व सदियों से ज्ञात है। जिस मनुष्य के पास यह गुण हैं, वह जीवन में काफी उन्नति करता है और मनवान्छित फल प्राप्त करता है। इस दिन गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, धन-दौलत, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति होती है।
भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र विघ्नहर्ता गणेश को कुल 108 नामों से जाना जाता है, जिनमें से प्रत्येक नाम उनके विभिन्न गुणों और शक्तियों का वर्णन करता है। भगवान गणेश को प्रमुख रुप से गणपति, विनायक, गजानन, लम्बोदर, गौरीपुत्र, विघ्नहर्ता, एकदंत, भालचंद्र, सुमुख, धूम्रकेतु और गणाध्यक्ष जैसे नामों से भी जाना जाता है। भगवान गणेश के अति शुभ बारह नामों का नित्य स्मरण करने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार के संकटों का सामना नहीं करना पड़ता है। विद्या अध्ययन, विवाह के समय, यात्रा , रोजगार के शुभारम्भ में या अन्य किसी भी शुभ कार्य को करते समय गणेश के बारह नाम लेने से किसी भी कार्य में आने वाली सारी अड़चनें दूर हो जाती हैं। मनुष्य की सारी मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है।
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