Vat Savitri Vrat 2025: भगवान विष्णु को समर्पित वट सावित्री व्रत महिलाओं के लिए बेहद खास माना जाता है। यह व्रत खास तौर पर पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत करने के लिए रखा जाता है। ज्येष्ठ अमावस्या के दिन सुहागिन महिलाएं यह व्रत रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन महिलाएं वटवृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। वट सावित्रि व्रत करने से वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्याएं दूर हो जाती है। हालांकि इस साल इस पर्व की डेट को लेकर असमंजस बना हुआ है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल ज्येष्ठ अमावस्या तिथि 26 मई को दोपहर 12:11 बजे शुरू हो रही है और यह तिथि 27 मई को सुबह 8:31 बजे समाप्त होगी। इसके अलावा अमावस्या तिथि दिन में ही प्रभावी रहेगी। इसलिए वट सावित्री व्रत 26 मई को रखा जाएगा।
वट सावित्री व्रत को लेकर खान-पान में कई तरह की दुविधाएं पैदा होती हैं। मन में यह शंका होती है कि अगर हम यह चीज खाएंगे तो हमारा व्रत टूट सकता है। व्रत का उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध करना है, ताकि जो भी शुभ कार्य किया जाए, उसमें सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो। व्रत के दौरान महिलाओं को फल, मेवे, दही और शहद आदि का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा घर पर बनी शुद्ध मिठाई, हलवा या गुड़ और आटे से बने पकवान सेवन किया जा सकता है।
अंडा, मांस, मछली, प्याज, लहसुन जैसी चीजें पूरी तरह से वर्जित हैं, इसलिए इससे बचें। स्वास्थ्य की दृष्टि से किसी भी व्रत से एक दिन पहले सादा भोजन करने की सलाह दी जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि तामसिक भोजन भारी और अपचनीय माना जाता है। इससे शरीर को नुकसान हो सकता है। तामसिक भोजन व्रत की अवधि में शरीर को ऊर्जा प्रदान नहीं करता है और व्रत के नियमों का पालन करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।
मान्यता है कि इस दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस मांगे थे और तब से यह व्रत हर साल श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस व्रत की पूजा विधि बहुत खास है। व्रत रखने वाली महिलाओं को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। इस व्रत में बरगद के पेड़ का विशेष महत्व है। पूजा करने से पहले बरगद के पेड़ यानी वट वृक्ष के नीचे के क्षेत्र को साफ करें और पूजा स्थल तैयार करें। सावित्री और सत्यवान की पूजा करें और वट वृक्ष को जल अर्पित करें। वट वृक्ष को लाल धागे से बांधें और उसकी 7 बार परिक्रमा करें। व्रत कथा पढ़ें और अंत में आरती करें। गरीबों और ब्राह्मणों को दान दें और उनसे आशीर्वाद लें। अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत खोलें।
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