लखनऊः विंध्याचल की पहाड़ियों में विराजमान माता विंध्यवासिनी आदिशक्ति का रूप हैं। मां जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरिको जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है। महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर ने देवी की स्तुति की थी, उन्होंने कि हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचल पर आप सदैव विराजमान रहती हैं। पद्मपुराण में विंध्याचल-निवासिनी इन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है। श्रीमद्देवी भागवत के दशम स्कन्ध में विस्तृत रूप में देवी की कथा है, जिसमें स्वायम्भुव मनु और शतरूपा का वर्णन है। विवाह के बाद स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ साल तक कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचलपर्वत पर चली गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीष से हुआ।
देवी पुराण के अनुसार, माता सती ने अपने पति भगवान शिव के अपमान से दुखी होकर अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में हवनकुंड में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। भगवान शिव ने सती के शरीर को त्रिशूल में लेकर हिमालय की ओर यात्रा की थी। माता सती के शरीर के अंग जिन स्थानों पर गिरे, उन्हें शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। दुनिया में कुल 51 शक्तिपीठ हैं, जहाँ माता सती के शरीर के अंग गिरे थे। इन स्थलों को आज भी पूजा जाता है। भारत में शक्तिपीठों की कुल संख्या 42 है, इसके अलावा पाकिस्तान में एक, बांग्लादेश में चार, श्रीलंका में एक, तिब्बत में एक और नेपाल में दो शक्तिपीठ हैं। जहां तक प्रमुख और प्रसिद्ध शक्तिपीठों की बात है, तो असम में कामाख्या देवी, हिमाचल प्रदेश में ज्वाला देवी, उज्जैन में हरिसिद्धि माता, उत्तर प्रदेश में विंध्यपर्वत पर विंध्यवासिनी शक्तिपीठ, पाकिस्तान में हिंगलाज भवानी, हिमाचल में चामुण्डा देवी, सहारनपुर में शाकम्भरी देवी, कोलकाता में काली माता, त्रिपुरा में त्रिपुर सुंदरी माता, जम्मू कश्मीर में वैष्णो देवी, मथुरा में माता कात्यायनी, वाराणसी में माता विशालाक्षी, प्रयागराज में मां ललिता, जलंधर में मां त्रिपुरमालिनी और कुरुक्षेत्र में माता सावित्री शक्तिपीठ है। हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अवसर पर देवी के सभी शक्तिपीठों पर भक्तों की भीड़ जुटती है। यहां दर्शन करने वालों का तांता लगा रहता है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने विंध्य कॉरिडोर बनाकर मंदिर की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा दिया है। विंध्याचल को प्रमुख धार्मिक व पर्यटन स्थल बनाने के लिए व्यापक स्तर पर निर्माण कार्य किये जा रहे हैं।
सड़क से विंध्याचल जाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (एनएच 2) से जा सकते हैं। इस राजमार्ग को दिल्ली-कोलकाता रोड के रूप में भी जाना जाता है। नेशनल हाईवे 2 पर गोपीगंज या औरई में, इलाहाबाद और वाराणसी के बीच दोनों जगहों पर, पवित्र नदी गंगा पार करने के बाद, शास्त्री पुल के माध्यम से, राज्य राजमार्ग 5 से होते हुए आप आसानी से विंध्याचल पहुंच सकते हैं । यदि आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की तरफ से बसों की पर्याप्त संख्या इलाहाबाद और वाराणसी से उपलब्ध है। इस संबंध में जानकारी लेने के लिए यूपीआरसीटीसी के इन्क्वायरी नंबर पर संपर्क कर सकते हैं।
यदि आप हवाई मार्ग से विंध्याचल जाने के इच्छुक हैं, तो सबसे निकटतम हवाई अड्डा उत्तर प्रदेश के वाराणसी में लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो विंध्यवासिनी मंदिर, विंध्याचल से लगभग 72 किलोमीटर दूर है। यहां रेलवे मार्ग से जाने की सुविधा भी है। यहां बहुत सी ट्रेनें रुकती हैं। ट्रेनों के अधिक विकल्पों के लिए, रेलवे स्टेशन 'मिर्जापुर' (भारतीय रेलवे कोड-एमजेडपी) चुन सकते हैं। यह स्टेशन माता विंध्यवासिनी मंदिर, विंध्याचल से लगभग नौ किलोमीटर की दूरी पर है।
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