लखनऊः सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस पूरे माह शिव भक्त शिवलिंग को जल चढ़ाने के साथ साथ सोमवार का व्रत भी रखते हैं। जो भक्त 16 सोमवार का व्रत करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सावन में भगवान शिव के प्रतीक स्वरूप 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का भी बहुत महत्व होता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि सावन में किसी भी एक ज्योतिर्लिंग का दर्शन कर लेने से व्यक्ति का भाग्य बदल जाता है।
सावन का महीना जल्द ही शुरू होने वाला है। सावन में बोबा भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करना अत्यंत फलदायी होता है। भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख रूप से काशी में बाबा विश्वनाथ, उज्जैन में महाकाल, मध्य प्रदेश के खांडवा में ओंकारेश्वर धाम, उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग में बाबा केदारनाथ धाम, महाराष्ट्र के पुणे में भीमाशंकर धाम, नासिक में त्रयंबकेश्वर धाम, औरंगाबाद के पास घृष्णेश्वर धाम, गुजरात के प्रभास पाटन में सोमनाथ घाम, द्वारका में नागेश्वर धाम, आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में मल्लिकार्जुन, झारखंड के देवघर में वैद्यनाथ धाम, तमिलनाडु में रामेश्वरम का परम धाम शामिल है। इन सभी ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करने के लिए सावन में भक्तों की भीड़ जुटती है।
भगवान भोलेनाथ के पवित्र मास सावन में शिव और शक्ति की पूजा करना अत्यंत फलदायी होता है। यदि सावन के महीने में भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों में से किसी एक का भी दर्शन एवं पूजन कर लें, तो व्यक्ति को अनेकों कष्टों और दोष पाप से मुक्ति मिल जाती है। यही नहीं, व्यक्ति को जीवन-मृत्यु के काल-चक्र से भी मुक्ति मिल जाती है। इसलिए सावन के महीने में किसी न किसी एक ज्योतिर्लिंग का दर्शन अवश्य करें।
देश के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग में गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में चंद्रमा का अशुभ प्रभाव होता है, उन्हें सावन के महीने में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा और दर्शन अवश्य करना चाहिए। इससे चंद्रमा के नकारात्मक प्रभावों से छुटकारा मिलता है।
आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को दक्षिण भारत का कैलाश भी कहा जाता है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव और माता पार्वती दोनों का मिला-जुला रूप है। इस दिव्य स्थल का वर्णन स्कंद पुराण में श्रीशैल काण्ड नामक अध्याय में दिया हुआ है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भक्तगण भगवान मल्लिकार्जुन के मंदिर में शिवलिंग की पूजा करता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले पुण्य के बराबर फल मिलता है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित है। महाकालेश्वर को कालों के काल महाकाल के नाम से जाना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग क्षिप्रा नदी के किनारे ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यहां महाकाल एक मात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से भगवान महाकालेश्वर के दर्शन व पूजन करता है, उसे मृत्यु के बाद यमराज द्वारा दी जाने वाली यातनाओं से मुक्ति मिल जाती है।
मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में यह भगवान भोलेनाथ का एकमात्र मंदिर है, जो नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित है। यहां पर भगवान शिव नदी के दोनों किनारों पर स्थित हैं। महादेव को यहां पर ममलेश्वर और अमलेश्वर के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग के आस-पास कुल 68 तीर्थ स्थित हैं। यहां भगवान शिव 33 करोड़ देवताओं के साथ विराजमान हैं। ओंकारेश्वर मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर दर्शन एवं पूजन करने पर व्यक्ति के सारे पाप दूर हो जाते हैं। यह मान्यता भी है कि भगवान भोलेनाथ तीनों लोकों का भ्रमण करने के बाद हर रात को यहां पर विश्राम करने के लिए आते हैं। इस स्थान पर भगवान शिव और माता पार्वती चौसर खेलते हैं।
केदारनाथ धाम भगवान शिव को अतिप्रिय है। केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण और शिव पुराण में विस्तृत रूप में मिलता है। केदारनाथ मंदिर को स्वयंभू माना जाता है, यहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए हैं। केदारनाथ धाम को ऊर्जा का बड़ा केंद्र माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां दर्शन करने से व्यक्ति को जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।
भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में काशी विश्वनाथ का स्थान सबसे विशेष है। ऐसी मान्यता है कि काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है। इसलिए काशी को भगवान भोलेनाथ की नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां हर वर्ष सावन के महीने में भगवान शिव के दर्शन के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु काशी विश्वनाथ आते हैं। यहां पवित्र गंगा नदी में स्नान कर बाबा विश्वनाथ के दर्शन करते हैं। शिव पुराण में बताया गया है कि काशी में मृत्यु को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सीधे भगवान शिव के धाम को प्राप्त करता है। व्यक्ति को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। इस कारण से लाखों लोग काशी में अपने अंतिम समय में भगवान शिव के दर्शन की कामना रखते हैं।
त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। कालसर्प दोष के निवारण के लिए इस ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व होता है। इस ज्योतिर्लिंग में तीन छोटे-छोटे शिवलिंग है, जो त्रिदेव के प्रतीक माने जाते है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों को मोक्ष, शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। इस स्थान को रावणेश्वर धान के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान पर रावण ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न के लिए अपने 9 सिरों को काटकार शिव जी को अर्पित कर दिया था। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर रावण को वरदान दिया था। यह मंदिर शिव और शक्ति का संगम स्थल माना जाता है, जहाँ भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सावन के महीने में यहां हर साल लाखों भक्त ‘बोल बम’ का जयकारा लगाते हुए पवित्र गंगाजल लेकर पैदल यात्रा करते हैं। शिव को जल अर्पित कर आशीर्वाद लेते हैं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका में स्थित है। शिवपुराण के अनुसार शिवजी का एक नाम नागेशं दारुकावने भी है। नागेश्वर का अर्थ होता है नागों का ईश्वर। जिन व्यक्तियों की कुंडली में नागदोष होता है, उन्हें नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से लाभ मिलता है। भक्तो को सभी प्रकार के पापों और कष्टों से मुक्ति मिलती है। भक्तों को सुख-शांति प्राप्त होती है।
शिव पुराण के अनुसार रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का निर्माण स्वयं भगवान श्रीराम ने किया था। भगवान श्रीराम के द्वारा बनाए जाने के कारण इस ज्योतिर्लिंग का नाम रामेश्वरम पड़ा। ऐसी मान्यता है कि लंका पर विजय हासिल करने के बाद प्रभु श्रीराम ने समुद्र तट पर बालू से शिवलिंग बनाकर स्वयं पूजा की थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रामेश्वरम में दर्शन करने से ब्रह्म हत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों में रामेश्वरम को गंधमादन भी कहा गया है। यहां दर्शन करने से भगवान शिव के साथ-साथ भगवान राम की भी कृपा प्राप्त होती है।
घृष्णेश्वर ज्योतिलिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग को घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि जो निःसंतान दंपति सूर्योदय से पहले शिवालय सरोवर का दर्शन के बाद घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते हैं, उनकी संतान प्राप्ति की इच्छा अवश्य पूरी होती है। इस मंदिर का वातावरण अत्यंत शांत और पवित्र है। यहां शिवलिंग के दर्शन करने से मनुष्य को आत्मिक शांति मिलती है।
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