गौरी व्रत 2025: 6 जुलाई से शुरू होगा व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

खबर सार :-
गौरी व्रत 2025 इस बार 6 जुलाई से शुरू होकर 10 जुलाई तक चलेगा। जानिए व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, त्रिपुष्कर योग और रवि योग का महत्व। साथ ही जानिए पूजा करने की विधि।

गौरी व्रत 2025: 6 जुलाई से शुरू होगा व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
खबर विस्तार : -

नई दिल्ली: आषाढ़ मास में मनाया जाने वाला गौरी व्रत इस साल 6 जुलाई से शुरू होकर 10 जुलाई तक चलेगा। यह व्रत अविवाहित कन्याओं को योग्य वर और सुहागिन स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देने के लिए जाना जाता है।

गौरी व्रत का महत्व और परंपरा
गौरी व्रत मुख्य रूप से गुजरात में मनाया जाता है, जहाँ मां गौरी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए कन्याएं और सुहागिन महिलाएं इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ करती हैं। ऐसी मान्यता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या और उपवास किया था। इसी परंपरा का पालन करते हुए, आज भी युवतियां मनचाहा जीवनसाथी और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के साथ यह व्रत रखती हैं। इस दौरान मां गौरी के साथ भगवान शिव और गणेश जी की भी पूजा की जाती है। कई स्थानों पर मिट्टी या धातु से बनी देवी गौरी की प्रतिमा का पूजन करने का भी विधान है।

पूजा विधि और आवश्यक सामग्री
गौरी व्रत के दिन, ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद पूजा स्थल को गंगाजल छिड़ककर शुद्ध किया जाता है। एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर कलश स्थापना की जाती है, जिसमें आम के पत्ते और नारियल रखे जाते हैं। इसके बाद मां गौरी को हल्दी, कुमकुम, चूड़ी, बिंदी, वस्त्र और सुहाग की सभी सामग्री अर्पित की जाती है। व्रत कथा सुनने, घी का दीपक जलाने और मां की आरती करने के बाद गौरी त्रिपुरसुंदरी नमः मंत्र का जाप किया जाता है। व्रत के समापन पर छोटी कन्याओं को भोजन कराया जाता है और उन्हें वस्त्र भेंट किए जाते हैं।

शुभ योग और मुहूर्त
दृक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 5 जुलाई को सुबह 09 बजकर 14 मिनट पर शुरू हो रही है। 6 जुलाई को एकादशी तिथि सुबह 09 बजकर 14 मिनट तक रहेगी, जिसके बाद द्वादशी तिथि का आरंभ होगा। इस साल गौरी व्रत के दौरान कई शुभ योग बन रहे हैं।

त्रिपुष्कर योग
त्रिपुष्कर योग 6 जुलाई को रात 09:14 बजे से रात 10:42 बजे तक सक्रिय रहेगा। यह विशिष्ट योग तब बनता है जब रविवार, मंगलवार या शनिवार निम्नलिखित तिथियों (चंद्र दिनों) में से किसी एक के साथ मेल खाता है, द्वितीया (दूसरी), सप्तमी (सातवीं), या द्वादशी (12वीं)। इसके अतिरिक्त, इनमें से कोई एक नक्षत्र (चंद्र गृह) अवश्य मौजूद होना चाहिए, विशाखा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, पूर्वा भाद्रपद, पुनर्वसु या कृत्तिका। ऐसा माना जाता है कि इस योग के दौरान किए गए किसी भी कार्य का परिणाम तीन गुना होता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, इसलिए यह आपके कार्यों के प्रति सचेत रहने का समय है।

रवि योग
 6 जुलाई को रवि योग सुबह 05ः56 बजे से रात 10ः42 बजे तक रहेगा। यह योग तब बनता है जब चंद्रमा का नक्षत्र सूर्य के नक्षत्र से 4, 6, 9, 10, 13 या 20वें भाव में होता है। रवि योग पर नए उद्यम शुरू करने, धार्मिक अनुष्ठान करने या कोई महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए शुभ माना जाता है क्योंकि माना जाता है कि यह सफलता दिलाता है और बाधाओं को दूर करता है।

भद्रा का साया: 6 जुलाई को भद्रा का समय सुबह 05 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर रात 10 बजकर 42 मिनट पर समाप्त होगा।

इन शुभ योगों के साथ गौरी व्रत का अनुष्ठान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है।

अन्य प्रमुख खबरें