शिखर सम्मेलन छोड़ वापस चले ट्रंप, कुछ सवाल तो स्वाभाविक हैं!

खबर सार :-
रूस ने 2014 में क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। इसके बाद रूस को इस ग्रुप से बाहर निकाल दिया गया। जहां तक भारत की बात है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2019 से जी-7 शिखर सम्मेलन में शामिल हुए है। कनाडा के प्रधानमंत्री ने पीएम मोदी के जी-7 समिट में शामिल होने का न्योता दिया था।

शिखर सम्मेलन छोड़ वापस चले ट्रंप, कुछ सवाल तो स्वाभाविक हैं!
खबर विस्तार : -

अमित कुमार झा
ग्रुप ऑफ सेवन (दुनिया के सात विकसित और औद्योगिक देशों का समूह) यानी जी-7। विश्व की 40 फीसदी से अधिक जीडीपी और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर गहरा असर रखने वालों का भी यह प्रभावशाली समूह है। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, इटली, संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा कनाडा इसके सदस्य देश हैं। कनाडा को इस बार इसकी मेजबानी (15-17 जून) मिली थी। हालांकि, कनानास्किस (कनाडा) में जी-7 के तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन पर दुनियाभर की नजरें रही हैं। वर्तमान में वैश्विक राजनीति कठिन दौर से गुजर रही है। दुनिया में आर्थिक अनिश्चितताओं की स्थिति है। भू- राजनीतिक तनाव हैं। ईरान-इज़राइल, यूक्रेन- रुस और जलवायु संकट का भी बड़ा मुद्दा है। महामारी से निपटने के लिए रणनीति, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दे भी अहम हैं। वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और यूक्रेन के प्रमुख जेलेंस्की का समय से पहले शिखर सम्मेलन से वापस चले जाना, कई आशंकाओं और सवालों को जन्म दे रहा है। 

1975 से शुरू हुआ था जी-7 का सफर

जी-7 ग्रुप की स्थापना साल 1975 में हुई थी। इस ग्रुप में पहले रूस भी शामिल था, लेकिन 2014 में उसे बाहर कर दिया गया। जी-7 मजबूत और ताकतवर 7 देशों का एक ग्रुप है। इसके सभी सदस्य दुनिया की आर्थिक चुनौतियों से निपटने का काम करते हैं। जी-7 ग्रुप का कोई मुख्यालय नहीं है। हर साल अलग-अलग देश इसकी अध्यक्षता करता है। जी-7 की स्थापना जब 1975 में हुई थी, उस समय पूरी दुनिया में आर्थिक चुनौती दिखाई दे रही थी। तेल के निर्यात पर लगी पाबंदी की वजह से दुनिया भर में आर्थिक मंदी जैसा माहौल हो गया था। उस दौरान 6 देशों ने मिलकर एक ग्रुप बनाया। शुरूआत में इस ग्रुप में अमेरिका, फ्रांस, इटली, जापान, ब्रिटेन और जर्मनी देश थे। एक साल बाद कनाडा भी इस ग्रुप का हिस्सा बन गया। इस तरह ये ग्रुप जी-7 कहलाने लगा। 1998 में रूस भी इस ग्रुप का हिस्सा बन गया। इसके बाद इस ग्रुप को जी-8 कहा जाने लगा। 2014 तक ये संगठन जी-8 ही रहा।

कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क जे. कॉर्नी ने हाल ही में पीएम मोदी को इस समिट के लिए आमंत्रित किया था। इसके पहले जी-7 समिट में भारत को न्यौता न मिलने पर विपक्ष केन्द्र सरकार पर सवाल खड़े कर रहा था। विपक्ष ने कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क जे. कॉर्नी पर सवाल भी खड़े किए। भारत जी-7 का मेंबर नहीं है, इसके बावजूद भारत के प्रधानमंत्री को इस शिखर सम्मेलन में बुलाया गया। मार्क जे. कॉर्नी के अनुसार, ये जरूरी है कि भारत जैसे देश भी इन उच्चस्तरीय वैश्विक चर्चाओं का हिस्सा बनें। देखा जाए तो जी-7 संगठन में 7 देश अमेरिका, फ्रांस, इटली, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान और कनाडा शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2019 से जी-7 समिट में शामिल होते आ रहे हैं। जी-7 संगठन में सभी विकसित देशों को शामिल किया जाता है। जब जी-7 की स्थापना हुई थी, तब भारत एक विकासशील देश था और आर्थिक रूप से भी काफी कमजोर था। 

इजराइल-ईरान संघर्ष और व्यापार 

यह सम्मेलन इजराइल- ईरान के बीच जारी सैन्य संघर्ष के बीच हो रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा सहयोगियों और प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ लगाए जा रहे उच्च सीमा शुल्क की पृष्ठभूमि भी इसमें शामिल है। ईरान पर इजराइल के हमले और तेहरान की जवाबी कार्रवाई ने कई वैश्विक नेताओं को हतप्रभ कर दिया है। सबका मानना है कि यह एक अधिक अस्थिर विश्व का नवीनतम संकेत है, क्योंकि ट्रंप अमेरिका को विश्व के ‘पुलिसमैन’ की भूमिका से मुक्त करना चाहते हैं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री केअर स्टॉर्मर जब जी-7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए कनाडा रवाना होने वाले थे, तब कहा था कि उन्होंने संकट को कम करने के प्रयासों पर ट्रंप और इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ-साथ अन्य वैश्विक नेताओं के साथ चर्चा की है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर हमारी चिंताएं लंबे समय से हैं। हम इजराइल के आत्मरक्षा के अधिकार को मान्यता देते हैं, लेकिन वे इस बात को लेकर पूरी तरह स्पष्ट हैं कि इसे कम करने की जरूरत है। वैसे यह अलग बात है कि गाहे बेगाहे ब्रिटेन भी पश्चिम एशिया के संकट को बढा रहा। वह लड़ाकू विमान और अन्य सैन्य सहायता भेज रहा है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों रविवार को कनाडा जाने से पहले बेहद प्रतीकात्मक कदम के तौर पर ग्रीनलैंड पहुंचे थे, जहां उन्होंने आर्कटिक क्षेत्र के नेता और डेनमार्क के प्रधानमंत्री से डेनिश हेलीकॉप्टर में मुलाकात की।

मैक्रों के कार्यालय ने कहा कि ग्रीनलैंड की यात्रा इस बात की याद दिलाती है कि पेरिस संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और सीमाओं की सुचिता बनाए रखने के सिद्धांतों का समर्थन करता है, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र में निहित है। क्यूबेक में 2018 में हुई जी-7 शिखर सम्मेलन में कनाडा के शेरपा रहे और छह जी7 शिखर सम्मेलनों में हिस्सा लेने वाले अनुभवी पीटर बोहम को उम्मीद है कि राष्ट्राध्यक्ष चर्चा के दौरान युद्ध के मुद्दे पर अधिक समय देंगे। सम्मेलन के दौरान जी-7 में शामिल सभी सदस्य देशों ने मिनरल्स, ए आइ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और जंगलों में आग रोकने जैसे मुद्दों पर 6 साझा बयानों पर सहमति जताई है। इसके अलावा क्वांटम कंप्यूटिंग, माइग्रेंट स्मगलिंग जैसे मुद्दों पर भी एक राय व्यक्त की है। जी-7 के समापन भाषण पर कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क की ओर से कहा गया कि पूरी दुनिया बदलाव के दौर से गुजर रही है। हमारे सामने कई चुनौतियां हैं। चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो या फिर संघर्ष।

अन्य प्रमुख खबरें