लखनऊः कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने किसानों को राष्ट्र निर्माण में भागीदार बताते हुए ’जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान’ का नया नारा दिया। इस नारे के माध्यम से कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक सोच और शोध आधारित नवाचार को बढ़ावा देने का संदेश दिया गया। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने कृषि अनुसंधान, तकनीकी नवाचार, जलवायु अनुकूल फसल प्रणाली और नई किस्मों के विकास के लिए अतिरिक्त बजट का प्रावधान किया है। इससे बदलते मौसम की चुनौतियों का समाधान किया जाएगा।
प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में जल संरक्षण तकनीकों पर बल दिया गया है। कम पानी में अधिक उत्पादन देने वाली फसलों व सिंचाई पद्धतियों (स्प्रिंकलर, ड्रिप) को प्रोत्साहन, भूगर्भ जल का सीमित उपयोग व वर्षाजल संचयन की योजनाएं लागू की जा रही हैं। 05 मई को प्रदेशभर में विशेष अभियान चलाया जाएगा, जिसमें कृषि विभाग के अधिकारी किसानों के खेतों से मिट्टी के नमूने एकत्र करेंगे। इससे खेतों की उर्वरता की जांच कर, आवश्यक उर्वरक सिफारिशें दी जाएंगी। इससे लागत में कमी व उत्पादकता में वृद्धि होगी। प्रदेश के कई विद्यालयों में कृषि से संबंधित विषयों की पढ़ाई शुरू की गई है। इससे नई पीढ़ी में खेती-किसानी के प्रति जागरूकता व रुचि बढ़ेगी, साथ ही आधुनिक कृषि तकनीकों की जानकारी मिलेगी।
कृषि मंत्री ने कहा कि धान-गेहूं की पारंपरिक फसलों के साथ-साथ दलहन (चना, अरहर, मसूर), तिलहन (सरसों, सूरजमुखी, मूंगफली) व मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा, कोदो, सावां) की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे किसानों की आय में वृद्धि और पोषण सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी। प्रदेशभर में आयोजित गोष्ठियों, मेलों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसान सम्मान निधि, पीएम-कृषि सिंचाई योजना, प्राकृतिक खेती योजना आदि की जानकारी दी जा रही है ताकि अधिक से अधिक किसान लाभान्वित हो सकें। सरकार द्वारा रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशकों के स्थान पर जैविक व प्राकृतिक विधियों को अपनाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत गोबर खाद, जीवामृत, हरी खाद व अन्य देशज तकनीकों के प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं।
कृषि मंत्री ने विकसित भारत के निर्माण में कृषि आत्मनिर्भरता को अहम मानते हुए स्थानीय बीज उत्पादन, घरेलू उपकरण निर्माण, मूल्य संवर्धन व ग्रामीण कृषि-उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था सशक्त होगी। खरीफ के मौसम में विशेष रूप से बरसात प्रभावित जिलों में किसानों को फसल बीमा योजना से जोड़ने के लिए पंजीकरण कराए जाने का आह्वान किया गया है, ताकि प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुकसान की भरपाई संभव हो सके।
प्रदेश के प्रत्येक 2 मंडल पर खरीफ उत्पादकता गोष्ठी आयोजित की जाएगी, जिनमें स्थानीय किसान, कृषि वैज्ञानिक व अधिकारियों को जोड़कर तकनीकी जानकारी व योजनाओं की जानकारी दी जाएगी। वैज्ञानिक अनुसंधान आधारित उन्नत बीज, समुचित खाद व कीटनाशक प्रबंधन, मृदा परीक्षण व जल प्रबंधन जैसी तकनीकों को अपनाने पर बल दिया गया है ताकि उत्पादन व गुणवत्ता में वृद्धि हो सके। प्रदेशभर में फार्मर रजिस्ट्री पोर्टल, डिजिटल क्रॉप सर्वे प्रणाली का कार्य किया जा रहा है। वेदर स्टेशन की स्थापना की जाएगी, इससे किसानों को मौसम पूर्वानुमान, फसल स्वास्थ्य, बाजार भाव और सरकारी योजनाओं की डिजिटल जानकारी तत्काल मिल सकेगी।
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